शनिवार, 24 जनवरी 2015

अर्ज़ किया है- 2



'अंचल' रामेश्वर शुक्ल- 
नींद मेरी सो गई जाकर किसी की बाँह में 
रात सब-की-सब किसी के कुन्तलों में बस गई 
रुक गई सहसा पवन की साँस किस आकाश में 
फिर किसी की याद आकर स्तब्धता को कस गई.

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अकबर इलाहाबादी- 
हिन्दी- मुस्लिम में हिन्द की नींव भी है 
अफ्तार में है खजूर तो सेव भी है 
'अल्लाह-अल्लाह' है जबाँ पर बेशक 
लेकिन यक रंग 'बम महादेव' भी है.

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अकबर इलाहाबादी- 
बेपर्दा नजर आईं जो कल चन्द बीवियाँ 
अकबर जमीं में ग़ैरते-क़ौमी से गड़ गया 
पूछा जो उनसे आपका पर्दा किधर गया 
बोली वो यों कि अक्ल पे मर्दों की पड़ गया.

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अख़्तर पयामी- 
मेरा मयखाना, मेरा जामे-सबू लेते हो 
मेरा अहसास, मेरा जौके-नमू लेते हो 
पहलू में लिए फिरते हो जन्नत लेकिन 
मुस्कुराकर मेरे गर्दन से लहू लेते हो.

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अख़्तर शीरानी- 
रिन्दों को बहिश्त की खबर दे साक़ी 
इक जाम पिला के मस्त कर दे साक़ी 
पैमाना-ए-उम्र है छलकने के करीब 
भर दे साक़ी, शराब भर दे साक़ी.

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