सोमवार, 3 सितंबर 2018

विभांशु दिव्याल- "क्या नाम दें"


 शेष जो कुछ था हरा उसको कुतर खाने लगे
टिड्डियों के दल फ़सल पर फिर नज़र आने लगे।

बढ़ रहे हैं वे मुहल्ले की तरफ लेकर जुलूस
ख़बर क्या फैली घरों में लोग घबराने लगे।

क्या कहें इस सभ्यता के दौर को क्या नाम दें
जो लुटेरे हैं उन्हीं की लोग जय गाने लगे।

इस सियासत में नहीं बहती सुधारों की हवा
आँधियों के घर जिधर हैं हम उधर जाने लगे।

ये सियासत आपकी हमको कभी भायी नहीं
क्या हुआ जो हम इधर से उठ उधर जाने लगे।

आज ही जारी हुई है आपकी अधिसूचना
आज ही आकाश में सब गिद्ध मँडराने लगे।
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साभार: कलाकृति: बिजन चौधरी

सोमवार, 16 जुलाई 2018

राजगोपाल सिंह- "इससे तो बेहतर था"


आजकल हमलोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
चाबियों वाले खिलौने की तरह लड़ने लगे।

ठूँठ की मानिन्द अपनी जिन्दगी जीते रहे
जब चली आँधी तो पत्तों की तरह लड़ने लगे।

कौन-सा सत्संग सुनकर आये थे बस्ती के लोग
लौटते ही दो क़बीलों की तरह लड़ने लगे।

हम फ़क़त शतरंज की चालें हैं उनके वास्ते
दी जरा-सी शह तो मोहरों की तरह लड़ने लगे।

इससे तो बेहतर था हम ज़ाहिल ही रह जाते अगर
पढ़ गये, पढ़कर दरिन्दों की तरह लड़ने लगे।
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(Photo courtesy: Sea of hatred by Charles Williams)

शनिवार, 25 नवंबर 2017

पद्मश्री गोपाल दास 'नीरज'- चलो फिर गाँव का आँगन तलाशें


तेरा बाज़ार तो महँगा बहुत है
लहू फिर क्यों यहाँ सस्ता बहुत है।

सफ़र इससे नहीं तय हो सकेगा
यह रथ परदेश में रुकता बहुत है।

न पीछे से कभी वो वार करता
वो दुश्मन है मगर अच्छा बहुत है।

नहीं क़ाबिल गज़ल के है ये महफ़िल
यहाँ पर सिर्फ़ इक-मतला बहुत है।

चलो फिर गाँव का आँगन तलाशें
नगर तहज़ीब का गन्दा बहुत है।

क़लम को फेंक, माला हाथ में ले
धरम के नाम पर धन्धा बहुत है।

अकेला भी है और मज़बूर भी है
वो हर इक शख़्स जो सच्चा बहुत है।

सुलगते अश्क़ और कुछ ख़्वाब टूटे
ख़ज़ाना इन दिनों इतना बहुत है।

यहाँ तो और भी हैं गीत गायक
मगर नीरज की क्यों चर्चा बहुत है।

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

"रोशनी हो, न हो, जला कीजे"- राजू रंगीला


वो आदमी है तो हुआ कीजे
वो आदमी रहे दुआ कीजे।

सिर्फ होने से कुछ नहीं होता
आपने होने का हक़ अदा कीजे।

कुछ तो भीतर की घुटन कम होगी
खिड़कियों की तरह खुला कीजे।

घर ही दीवारों से बने माना
घर में दीवार हो तो क्या कीजे।

हंसते-हंसते ही आंख भर आये
इतना खुलके भी न हंसा कीजे।

हमने ये जुगनुओं से सीख लिया
रोशनी हो, न हो, जला कीजे।

सारे मसलों पे फिर से सोचेंगे
पहले माहौल ख़ुशनुमा कीजे।
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