कभी शऊर कभी दिल कभी
सुखन महके
वो बात कहिए कि दुनियाए-फिक्रोफन महके.
वो बात कहिए कि दुनियाए-फिक्रोफन महके.
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बशीर बद्र-
इक अस्पताल में कल
मैंने बेच दी आँखें
दहेज लाना जरूरी था बेटियों के लिए.
दहेज लाना जरूरी था बेटियों के लिए.
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निदा फ़ाज़ली-
धूप में निकलो घटाओं
में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है क़िताबों को हटाकर देखो.
ज़िन्दगी क्या है क़िताबों को हटाकर देखो.
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आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
वो मिरा दोस्त है तासीर
यही काफी है
उसमें क्या बात है इस बारे में सोचा ही नहीं.
उसमें क्या बात है इस बारे में सोचा ही नहीं.
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बशीर बदर-
हर धड़कते पत्थर को लोग
दिल समझते हैं
उमरें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में.
उमरें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में.
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बशीर बद्र-
कई लोग आग के फूल हैं, जरा दूर हों तो चमन-चमन
जहां मुस्कुरा के गले लगे, दिलो-जां में आग लगा गए.
जहां मुस्कुरा के गले लगे, दिलो-जां में आग लगा गए.
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मज़रूह सुल्तानपुरी-
बचा लिया मुझे तूफां की
मौज़ ने वर्ना
किनारे वाले सफ़ीना मिरा डुबो देते.
किनारे वाले सफ़ीना मिरा डुबो देते.
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मज़रूह सुल्तानपुरी-
शबे-इन्तज़ार की कश्मकश
में न पूछो कैसे सहर हुई
कभी एक चराग बुझा दिया कभी एक चराग जला दिया.
कभी एक चराग बुझा दिया कभी एक चराग जला दिया.
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आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
जीत पर खुश होने वाले
ये भी देख
ख़ून किसका है तेरी तलवार पर.
ख़ून किसका है तेरी तलवार पर.
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आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
याद कोई चोट को करता
नहीं
जख्म जिल्लत का मगर भरता नहीं.
जख्म जिल्लत का मगर भरता नहीं.
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