आदमी ख़ुद को कभी यूँ ही सजा देता है
रोशनी के लिए शोलों को हवा देता है।
ख़ून के दाग़ हैं दामन पे जहाँ सन्तों के
तू वहाँ कौन से 'नानक' को सदा देता है।
एक ऐसा भी वो तीरथ है मेरी धरती पर
क़ातिलों को जहाँ मन्दिर भी दुआ देता है।
मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।
चील-कौओं की अदालत में है मुज़रिम कोयल
देखिये वक़्त ये अब फ़ैसला क्या देता है।
तू खड़ा हो के कहाँ माँग रहा है रोटी
ये सियासत का नगर सिर्फ़ दग़ा देता है।
मैं किसी बच्चे की मानिन्द सुबह उठता हूँ
जब कोई माँ की तरह मुझको दुआ देता है।
साँस के बोझ से जब रूह तड़प उठती है
वो तेरा प्यार है जो दिल को हवा देता है।
मत उसे ढूँढ़िये शब्दों के नुमायश घर में
हर पपीहा यहाँ 'नीरज' का पता देता है।
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