रविवार, 9 जुलाई 2017

हम तो वही हैं: पद्मश्री गोपाल दास 'नीरज'



करने चले थे होम मगर हाथ जल गये
हम यूं हंसे कि आंख से आंसू निकल गये।


दिखते हैं सबसे पीछे यहां आज वो ही लोग
मरने के दिन जो मौत से आगे निकल गये।

वो दिन जो ज़िन्दगी के गुजारे तेरे बग़ैर
कुछ अश्क बन गये तो कुछ गीतों में ढल गये।

दैरो-हरम की राह में जो लड़खड़ाये पांव
आये वो मयक़दे में तो ख़ुद ही संभल गये।

है इश्क़ जिसका नाम वो कि ऐसी आग है
जो भी बुझाने आये इसे वो ख़ुद ही जल गये।

आयेगी कल बहार इसी एक आस में
टूटे हुए घिरौंदों से भी हम बहल गये।

इस कारवाने-क़ौम की इतनी है दास्तां
रस्ते वही हैं सिर्फ़ मुसाफिर बदल गये।

नीरज का हाल कोई जो पूछे तो बताइयो
हम तो वही हैं आज भी पर वो बदल गये।
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