मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

अर्ज़ किया है- 7



नातिक लखनवी-
ए शमां तुझ पै रात ये भारी है जिस तरह
हमने तमाम उम्र गुजारी है इस तरह.

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हजरत जोधपुरी-
बन्द रहने दो ख़ुदा के वास्ते मेरी ज़बां
वर्ना दोगे गालियाँ सरकार उठते-बैठते.

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शेबा ज़ाफरी-
ज़ख्म दे फूल दे कांटा दे दुआ दे मुझको
ज़िन्दगी सोच में डूबी है के क्या दे मुझको.

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अब्दुल अज़ीज़ खालिद- 
आशना किस को कहें नाआशना किस को कहें
लोग मिलते हैं मगर मिलकर भी मिलते हैं कहाँ.

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अमरोज़ क़मर- 
दामन में चन्द अश्क़ भी काफी हैं मेरे यार
तौफ़े में कोई सारी ख़ुदाई नहीं देता.

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नज़र रशीदी-
बेखुदी में जी रहा है आदमी
होश आ जाए तो दुनिया छोड़ दे.

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निदा फाज़ली- 
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता.....

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शरीफ अज़हर- 
एक ऐसे शख्स की पहचान कितनी मुश्किल है 
बनावटों का जो तन पर लिबास रखता है.

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