दुनिया की इक फ़कीर ने कुछ यूं मिसाल दी
मुट्ठी में भर के धूल हवा में उछाल दी।
इक़रार तूने प्यार का महफ़िल में करके दोस्त
दिल में जो एक फांस थी वो भी निकाल दी।
डूबे भंवर में वो कि किनारे निगल गये
हमने तलाशे-यार में नदी खंगाल दी।
चाहा था बदलियों से दिखे ईद का हिलाल
तुमने नक़ाब उठाके वो हसरत निकाल दी।
अंज़ामे-इश्क़ वक़्त ने समझाया इस तरह
चुटकी में ले के ख़ाक़ मेरे सर पे डाल दी।
पीछे से मेरी पीठ पे उसने किया है वार
जिसको कि मैंने ज़ंग में ख़ुद अपनी ढाल दी।
इक़रार करके बातों ही बातों में ऐ 'मयंक'
फिर उसने आज कल पे मुलाक़ात टाल दी।
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(हिलाल- नया चाँद)
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