मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

अर्ज़ किया है- 9



अरशी ज़दा
आहट है न दस्तक कोई उम्मीद न वादा 
किसके लिए मैं अपना सफर रोके हुए हूँ.

***

साहिर होश्यारपुरी- 
ग़म से ग़म हो ना खुशी से हो खुशी का एहसास 
ऐसी तदबीर भी ऐ दिल कोई कर दी जाय....... 

*** 

होती है इज़तराब से तकमीले-ज़िन्दगी 
मुश्किल के बाद इक नई मुश्किल तलाश कर.

***

प्रकाशनाथ परवेज़-
देखना ये है के अब कौन है किससे बढ़कर 
हुस्न तुम रखते हो हम हुस्ने-नज़र रखते हैं.

***

सुल्तान अंज़म-
तुझको चाहें के तुझसे रुठें हम
ज़िन्दगी क्या तेरा इरादा है.

***

परवीन कुमार अश्क़-
फूल छूने से भी कट जाती थी जिसकी उंगली 
आज उस शख़्स के हाथों में भी पत्थर देखा.

***

एडवन दास वाकफ़-
ख़ाना वीरानी का अपनी खुद हमें अहसास है 
वो हमारे घर नहीं आए बहोत अच्छा हुआ.

***

शान मैराज़-
आरज़ू जीने की है तो जी चट्टानों की तरह 
वर्ना पत्ते की तरह इक दिन हवा ले जायेगी.

***

अली अहमद ज़लीली-
रोज़ पढ़ता हूँ उसे- रात की तन्हाई में 
एक वो ख़त के अभी तक जिसे लिखा ही नहीं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें