हम तो यूँ ही बेहोश हो जाते, क्या जरूरत थी मुस्कुराने की.
-अनाम
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दिल जलकर ख़ाक हुआ, आँखों से रोया न गया;
ज़ख़्म कुछ ऐसे मिले, कि फूलों पे सोया न गया.
-अज्ञात
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मैं खुद ही एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ,
क्यों कोई मासूम मेरे लिए बदनाम हो जाये......... .
-अज्ञात
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हक़ की हमने खुलकर हिमायत की है
यह बग़ावत है? तो हमने बग़ावत की है.
-अज्ञात
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जिश्त पे इंक्लाब आने दे
कमसिनी पे शबाब आने दे
ऐ खुदा, तेरी खुदाई मिटा दूँगा
जरा होंठों तक शराब आने दे,
मरने और जीने का फैसला होगा
जरा उनका जवाब आने दे.
-अज्ञात
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