शनिवार, 24 जनवरी 2015

अर्ज़ किया है- 1



बस एक बार देख लेना था, गर जरूरत थी आजमाने की;
हम तो यूँ ही बेहोश हो जाते, क्या जरूरत थी मुस्कुराने की. 
-अनाम

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दिल जलकर ख़ाक हुआ, आँखों से रोया न गया; 
ज़ख़्म कुछ ऐसे मिले, कि फूलों पे सोया न गया. 
-अज्ञात

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मैं खुद ही एहतियातन उस गली से कम गुजरता हूँ,
क्यों कोई मासूम मेरे लिए बदनाम हो जाये......... . 
-अज्ञात

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हक़ की हमने खुलकर हिमायत की है 
यह बग़ावत है? तो हमने बग़ावत की है. 
-अज्ञात

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जिश्त पे इंक्लाब आने दे 
कमसिनी पे शबाब आने दे 
ऐ खुदा, तेरी खुदाई मिटा दूँगा
जरा होंठों तक शराब आने दे, 
मरने और जीने का फैसला होगा
जरा उनका जवाब आने दे. 
-अज्ञात

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