हम पढ़ रहे थे ख्वाब के पुर्ज़ों को
जोड़ के
आंधी ने ये तिलस्म भी रख डाला तोड़ के.
आंधी ने ये तिलस्म भी रख डाला तोड़ के.
आग़ाज़ क्यों किया था सफर इन-ख़लाओं का
पछता रहे हो सब्ज़ ज़मीनों को छोड़ के.
पछता रहे हो सब्ज़ ज़मीनों को छोड़ के.
एक बूंद ज़हर के लिए फैला रहे हो हाथ
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के.
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के.
कुछ भी नहीं जो ख़्वाब की सूरत दिखाई दे
कोई नहीं जो हमको जगाए झिंझोड़ के.
कोई नहीं जो हमको जगाए झिंझोड़ के.
इन पानियों से कोई सलामत नहीं गया
है वक़्त अब भी क़िश्तियाँ ले जाओ मोड़ के.
है वक़्त अब भी क़िश्तियाँ ले जाओ मोड़ के.
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