यारब मुआफ कर मेरे इस हुस्ने-सहू को
यह हुस्ने-सहू, हुस्ने-अक़ीदत की बात थी
मैंने हरेक चीज को अपना समझ लिया
मुझको खबर न थी यह तेरी कायनात थी.
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अब्दुल हमीद 'अदम' -
काश इक रोज तेरे कूचे में
यूँ गिरूँ लड़खड़ा के मस्त-ओ-खराब
तू ये पूछे किसी से कौन है यह
और क्यों पी गया है इतनी शराब.
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उनको गौहर मिले जो डूब के तह तक पहुँचे
मैं था साहिल पे मुझे रेत के ज़र्रात मिले.
- असलम मंज़र
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तमाम उम्र इसी एहतयात में गुजरी
के आशियाना किसी शाखे गुल पै बार न हो.
- माहशर लखनवी
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जानता हूँ मेरे बालो पर नहीं तो क्या हुआ
उस बुलन्दी तक मुझे मेरा खुदा ले जायेगा.
- आलम बलयावी
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खुशी के साथ रंजो-ग़म का भी एहसास लाज़म है
गुलों की शाख पर पत्ते नहीं काँटे भी होते हैं.
-साजन पेशावरी
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हर शख्स जानता है फ़सादों का दौर है
फिर भी बनाए जाते रहे घर नए-नए.
- शहबर सिकन्दरपुरी
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