खुदा बनने की कोशिश कर रहा है
जिसे इन्सां बनाया था खुदा ने.
जिसे इन्सां बनाया था खुदा ने.
सलाहुद्दीन अयूबी-
इनसे लड़ते हुए इक उम्र गुजारी मैंने
कौन घबराता है बिफरे हुए तूफानों से.
कौन घबराता है बिफरे हुए तूफानों से.
अज़म ग़ाज़ीपुरी-
ग़रीबी और अमीरी की फ़कत इतनी कहानी है
ग़रीबी इक बुढ़ापा है अमीरी इक जवानी है.
ग़रीबी इक बुढ़ापा है अमीरी इक जवानी है.
अजम गाजीपुरी-
देखो जो मोहब्बत से पत्थर भी पिघल जायें
अख़लास की दौलत ही सबसे बड़ी दौलत है.
अख़लास की दौलत ही सबसे बड़ी दौलत है.
डा. धर्मेन्द्रनाथ-
तूफान जो बाहर से आयेगा निपट लेंगे
डर है के चिरागों को गुल कर दें न परवाने.
डर है के चिरागों को गुल कर दें न परवाने.
सलाहुद्दीन अयूबी-
ख़ौफ दुश्मन से न डर है कोई बेग़ानों से
कोई ख़तरा है तो अपने ही निगहबानों से.
कोई ख़तरा है तो अपने ही निगहबानों से.
नसीम सलीमपुरी-
मुनहस्सर है अपने कर दारो अमल पर जिन्दगी
आप खुद अपना बनाता है मुकद्दर आदमी.
आप खुद अपना बनाता है मुकद्दर आदमी.
डा. के.के. ऋषि-
सोचना तो ठीक भी लाज़म भी है
सोचते रहना मगर अच्छा नहीं.
सोचते रहना मगर अच्छा नहीं.
आलम कुरैशी-
आँधियों के रुख पै जो जलते हुए रह जायेंगे
वो चिराग हर दौर में खुद राहबर कहलायेंगे.
वो चिराग हर दौर में खुद राहबर कहलायेंगे.
अरमान वारसी-
जिसने मनसूबे फ़सादों के बनाये शहर में
क़ौमी यक जहती में इसका नाम अखबारों में था.
क़ौमी यक जहती में इसका नाम अखबारों में था.
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