रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अर्ज़ किया है- 14



मंजर मजीद-
रास्ते की गर्द भी मुझसे बहोत नाराज है
होगा मेरे साथ चलने के लिए तैयार कौन.

डा. के.के. ऋषि-
जो घर बनाओ तो इक पेड़ भी लगा लेना 
परिन्दे सारे मुहल्ले में चहचहायेंगे.

शाद कादरी-
सूरत अगर हसीं है तो सीरत हसीं नहीं 
ये कैसी रौशनी है- कहीं है कहीं नहीं.

मंजर मजीद-
दुश्मनों की भीड़ में कुछ दोस्त भी मौजूद हैं 
देखते रहना करेगा मुझपै पहला वार कौन.

बशीर बदर-
इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ करीबी अजीज हैं 
इन्हें मेरी कोई खबर नहीं मुझे उनका कोई पता नहीं.

अजीज गाजीपुरी-
हार पर भी जो उसूले-जिन्दगी समझा गये 
आओ कर लें आज हम उन हस्तियों का तजकरा.

डा. के.के. ऋषि-
अज़्म का दामन पकड़कर देखिये 
मुश्किलें आसानियाँ हो जायेंगी.

राहत इन्दौरी-
बहोत ग़रूर है तुझको ऐ सरफिरे तूफां 
मुझे भी जिद है के दरिया को पार करना है.

शाकर अन्सारी-
कोई जागे के न जागे ये मुकद्दर उसका 
आपका फ़र्ज़ है, आवाज़ लगाते रहिये.

आलम बलयावी-

ज़माने की नज़र से इसलिए मैं गिर गया शायद 
के औरों की तरह मुझको रयाकारी नहीं आती.

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