रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अर्ज़ किया है- 15



डा. के.के. ऋषि-
जग में वर्ना कौन किसी का होता है 
सबका मकसद अपना अपना होता है.

डा. के.के. ऋषि-
कभी नाकामिए किस्मत का वो शिकवा नहीं करते 
जिन्हें मालूम है तदबीर से तकदीर बनती है.

बशीर बद्र-
बिछड़ते वक्त कोई बदगुमानी दिल में आ जाती 
उसे भी गम नहीं होता मुझे भी गम नहीं होता.

आलम बलयावी-
कुछ करके भला लेके गरीबों की दुआयें 
तुम बिगड़ी हुई अपनी बना क्यों नहीं लेते.

निदा फाजली-
औरों जैसे होकर भी हम बाइज्जत हैं बस्ती में 
कुछ लोगों का सीधापन है कुछ अपनी अय्यारी है.

हसरत देहलवी-
तेरे चलने से अगर उड़ती है ख़ाक 
ऐ बशर अश्कों के छींटे देके चल.

आलम कुरैशी-
फुटपाथ पर ठिठर के जो कल रात मर गया 
उस आदमी का शहर के सखियों में नाम था.

आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
तुम्हारे माथे पर मेहनत के कतरे 
तुम्हारे रिज़िक के जामन रहेंगे.

अख्तर मधुपुरी-
किसी के अहदे-वफा तोड़ने पै हैरत क्या 
ये सानहा यहाँ अक्सर दिखाई देता है.

अयूब ऐजाज-

ये अलग बात हवाओं ने दगाबाजी की 
हम तो निकले थे चरागों को जलाने के लिए.

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