रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अर्ज़ किया है- 16



आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
जिसके दिल में खौफ है भगवान का 
खौफ कोई उसके पास आता नहीं.

निदा फाजली-
गम है आवारा अकेले में भटक जाता है 
जिस जगहा रहिये वहां मिलते-मिलाते रहिये.

मजरूह सुल्तानपुरी-
वो बादे-अर्ज मतलब हाय रे शौके-जवाब अपना 
के वो खामोश थे और कितनी आवाजें सुनी मैंने.

अरफान परभनवी-
उन चरागों को बुझाने की है किसमें हिम्मत 
जिन चरागों की हवाओं ने जमानत ली है.

आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
मुझको वो जिन्दगी से प्यारे हैं 
साथ तेरे जो दिन गुजारे हैं.

आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
हम क्या मकान सारा तुम्हें मुंतजिर मिलेगा 
तुम सच्चे दिल से इक दिन दरवाजे तक तो आओ.

डॉ. के.के. ऋषि-
आने वाली सुबहा भी होगी हसीन 
जाने वाली शाम को हंसकर गुजार.

आर.डी. शर्मा 'तासीर'-
खुद माली के हाथों ये गुलिस्तां की तबाही 
देखी तो नहीं जाती मगर देख रहा हूँ.

आर.डी. शर्मा 'तासीर'-

करके देखो तो किसी का ऐतबार 
जान भी कर देगा वो तुम पर निसार.

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