रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अर्ज़ किया है- 17



अज्ञात-
मार ही डाले जो बेमौत, ये दुनिया वाले 
हम जो जिन्दा हैं, तो जीने का हुनर रखते हैं.

अज्ञात-
जो मिल गया है, उससे भी बेहतर तलाश कर 
कतरे में भी छुपा है, समन्दर तलाश कर 
हाथों की इन लकीरों ने मुझसे यही कहा 
कोशिश से अपनी, अपना मुकद्दर तलाश कर.

अज्ञात-
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है 
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जायेगा.

अज्ञात-
मिलेगी परिन्दों को मंजिल, ये उनके पर बोलते हैं 
रहते हैं कुछ लोग खामोश, लेकिन उनके हुनर बोलते हैं.

अज्ञात-

जब टूटने लगे हौसला, तो बस ये याद रखना 
बिना मेहनत के हासिल, तख्तो-ताज नहीं होते 
ढूंढ़ लेना अन्धेरों में मंजिल अपनी 
जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते.

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