रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अर्ज़ किया है- कृष्ण बिहारी 'नूर'


रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे 
गम का तूफां तो बहुत तेज था ठहरा कैसे.
हर घड़ी तेरे ख्यालों में घिरा रहता हूँ
मिलना चाहूँ तो मिलूँ खुद से मैं तन्हा कैसे.
मुझसे खुद पर भी भरोसा नहीं होने पाता 
लोग कर लेते हैं गैरों पर भरोसा कैसे.
दोस्तों शुक्र करो मुझसे मुलाकात हुई 
ये न पूछो कि लुटी है मेरी दुनिया कैसे.
देखी होंठों की हँसी जख्म न देखे दिल के 
आप दुनिया की तरह खा गये धोखा कैसे.
और भी अहले-खिरद अहले-जुनूं थे मौजूद 
लुट गये हम ही तेरी बज्म में तन्हा कैसे.
जुल्फें चेहरे की हटा लो कि हटा दूँ मैं खुद 
'
नूर' के होते हुए इतना अन्धेरा कैसे.
*** 
अहले-खिरद= बुद्धीजीवि

***

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